मुनि प्रमाणसागर जी – जीवन परिचय
जैन सिद्धांतों में छुपे वैज्ञानिक तथ्यों को अपनी सरल वाणी से जन जन तक पहुंचाने वाले मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज स्वयं को जैन धर्म का एक विद्यार्थी मानते हैं तथा अपने ज्ञान को गुरु चरणों में समर्पित करते हुए उनका आशीर्वाद मानते हैं। ऐसे पूजनीय, ज्ञान के भंडार, शंकाओं का समाधान करने वाले मुनि श्री का जीवन परिचय इस प्रकार है।
जन्म | 27 जून 1967 |
पूर्व नाम | नवीन कुमार जैन |
पिता का नाम | श्री सुरेन्द्र कुमार जैन |
माता का नाम | श्रीमती सोहनी देवी जैन |
जन्म स्थान | हजारी बाग ( झारखण्ड) |
वैराग्य | 4 मार्च 1984, राजनांदगांव (छतीसगढ़) |
क्षुल्लक दीक्षा | 8 नवम्बर 1985, सिद्ध क्षेत्र आहार जी, जिला- टीकमगढ़ (म.प्र.) |
ऐलक दीक्षा | 10 जुलाई 1987, अतिशय क्षेत्र थुवौनजी (म प्र) |
मुनि दीक्षा | 31 मार्च 1988 महावीर जयंती, सिद्ध क्षेत्र सोनागिरी जी (मध्यप्रदेश) |
दीक्षा गुरू | संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी |
‘यथा नाम तथा गुणः’ की उक्ति का जीवन्त रूप दिखाने वाले, बहमुखी प्रतिभा के धनी मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज युगसाधक सन्त शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य हैं। उनका गहन-गम्भीर ज्ञान, निर्दोष-निस्पृह चर्या और सहज-सरल वृत्ति स्वरूप व्यक्तित्व व्यक्ति को स्वत: ही अपनी ओर खींच लेता है। धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ और नीरस विषयों की सरल और सरस प्रस्तुति उनका अनुपम वैशिष्ट्य है। वे विद्या के तत्व को ग्रहण करके, तत्वविद्या के रूप में उपस्थापित करते हैं। उन्होंने धर्म को पारम्परिक जटिलताओं से मुक्त करते हुए, जीवन-व्यवहार उपयोगी रूप में प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि एक बार उनकी चर्चा और चर्या की परिधि में आने वाला, उनसे अभिभूत होकर उनका ही हो जाता है। मुनिश्री की वाणी में ओज और आकर्षण है। वे अपनी बात को बड़ी सहजता और सरलता से कह देते हैं। उनकी वाणी तन को स्वस्थ, मन को शीतल करके, श्रोताओं के हृदय में उतर जाती है। हर व्यक्ति मुनिश्री का नाम सुनते ही उनकी वाणी के रसास्वादन के लिए लालायित हो जाता है।
मुनिश्री प्रमाणसागर जी आज कुशल लेखक, ओजस्वी वक्ता, प्रखर चिन्तक और प्रामाणिक सन्त के रूप में जाने जाते हैं। मुनिश्री द्वारा प्रवर्तित कार्यक्रम ‘शंका समाधान‘ ने उन्हें एक नई पहचान दी है। वे जीवन की जटिलतम गुत्थियों को पल में ही खोल देते हैं। वे एक ऐसे जैन सन्त हैं, जिन्हें प्रतिदिन विभिन्न संचार माध्यमों से विश्व के सौ से अधिक देशों में सर्वाधिक सुना/देखा जाता है। मुनिश्री ने पुरातन की आधुनिक व्याख्या करके युवा पीढ़ी और भौतिक मानसिकता को धर्मोन्मुखी बनाया है।
संथारा/सल्लेखना के प्रकरण में पूज्य मुनि श्री ने ‘धर्म बचाओ आन्दोलन’ के रूप में जैन धर्म के संरक्षण और संवर्धन का जो स्तुत्य और प्रशंसनीय कार्य किया है, वह चिरस्मरणीय है। आप प्राणीमात्र की सर्वविध कुशलता और सुख-सम्पन्नता के विचार को जीते हैं। आपके इसी विचार की परिणति ‘जैन जनगणना’ और ‘भावना योग’ के रूप में परिलक्षित होती है। जहाँ ‘जैन जनगणना’ का कार्य पूज्यश्री की सधी वात्सल्य की अन्योक्ति है, तो वहीं ‘भावना योग’ प्राणी मात्र के प्रति संवेदनाओं की अभिव्यक्ति।
भावना योग – तन को स्वस्थ, मन को मस्त और आत्मा को पवित्र बनाने वाले आधुनिक प्रयोग का नाम है- ‘भावना योग’। इसके माध्यम से हम अपनी आत्मा में छिपी अनन्त शक्तियों को प्रकट कर सकते हैं। यह वही प्राचीन वैज्ञानिक साधना पद्धति है, जिसे करोड़ों वर्षों से अपनाकर जैन मुनि अपना कल्याण करते रहे हैं। इसके श्रद्धापूर्वक नियमित प्रयोग से हम आत्मा को निर्मल करके, चेतना की विशुद्धि को बढ़ाते हुए जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला सकते हैं।